गेर महोत्सव रंगपंचमी इंदौर मध्यप्रदेश World Best Holi . विश्व की सबसे प्राचीन होली परंपरा

रंगों का त्योहार होली (Holi) देशभर में धूमधाम से मनाई गई. पटना और काशी से लेकर मुंबई और बेंगलुरु तक लोगों ने बड़े ही उत्साह के साथ इसे सेलिब्रेट किया. लेकिन मध्य प्रदेश के शहर इंदौर (Indore) में रंगों को लेकर लोगों की खुमारी अभी भी चढ़ाव पर है।

Pic credit : Wikipedia & social media
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 यहां रंगपंचमी  (Rangpanchami) की तैयारी चल रही है. होली के पांचवें दिन मनाए जाने वाले त्योहार रंगपंचमी (Rang Panchami) के लिए इंदौर तैयार है. करीब 3 साल बाद यहां रंग और गुलाल की बौछार होगी. कोरोना को लेकर पिछले 2 साल से रंगपंचमी नहीं मनाई जा रही थी. इस बार 22 मार्च को रंगपंचमी मनाई जाएगी.

कोरोना के कारण दो साल से होली और रंगपंचमी बेरंग थी. बता दें कि आखिरी बार 2019 में गेर निकली थी. 2020 में कोरोना महामारी के कारण गेर नहीं निकल सकी थी. इसके अगले साल 2021 में भी कोरोना के कारण यह बाधित रहा. अब 2019 के 3 साल बाद 2022 में गेर निकलेगी. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की घोषणा के बाद इंदौर की पारंपिरक रंगारंग गेर निकलने की तैयारी जोर शोर से शुरू हो गई है. इंदौर में निकलने वाली विश्व प्रसिद्ध गेर को लेकर जबरदस्त उत्साह है.

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क्या है इसका इतिहास?

गेर निकालने की परंपरा होलकर वंश के समय से ही चली आ रही है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, राजघराने के लोग रंगपंचमी पर बैलगाड़ियों में फूलों और हर्बल चीजों से तैयार रंग और गुलाल को रख कर सड़क पर निकल पड़ते थे. रास्ते में उन्हें जो भी मिलता, उन्हें प्यार से रंग लगा देते थे. पिचकारियों में रंग भरकर भी लोग फेंका करते थे. बताया जाता है कि इस परंपरा का उद्देश्य समाज के सभी वर्गों के साथ मिलकर त्योहार मनाना रहा है. यह परंपरा कभी नहीं रुकी. हालांकि कोरोना के कारण 2020 और 2021 में आयोजन नहीं हो सका था. लेकिन इस बार पूरी तैयारी है.

गेर का लुत्फ उठाने विदेशों से भी पहुंचते हैं लोग

रंगपंचमी पर निकलने वाली रंगारंग गेर यानी फाग जुलूस के लिए इंदौर के लोग तो सालों भर इंतजार करते ही हैं, विदेश से भी लोग इसका लुत्फ उठाने यहां पहुंचते हैं. गेर निकालने की परंपरा दशकों पुरानी है. इसमें पिचकारी, वाटर टैंकर, मिसाइलों से करीब 100 से 200 फीट ऊंचाई तक रंगों की बौछार होती है, जिससे पूरा आसमान रंगारंग हो जाता है.

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आसमान से रंग, जमीन पर उमंग
इस बार गेर और रंगपंचमी पर लेकर लोगों का उत्साह चरम पर है। विदेशी सैलानी भी इसका आनंद लेने इंदौर पहुंच चुके हैं। इंदौर में दशकों से इस परंपरा को निभाया जा रहा है। रंगपंचमी के दिन मिसाइल, पिचकारी और वॉटर टैंकर से रंगों की बौछार की जाती है। आसमान रंगों से खिल उठता है। साल 2019 में आखिरी बार गेर निकाली गई थी। उसके बाद 2020  और 2021 में कोरोना के चलते गेर नहीं निकल सकी। जिसके बाद अब इसे मनाया जा रहा है।

UNESCO में शामिल करने का दावा

यूनेस्को की धरोहर में जोड़ने का प्रयास

इंदौर के लोग रंगों का त्योहार होली तो मनाते ही हैं, जबकि होली की तुलना में रंगपंचमी को अधिक उत्साह के साथ सेलिब्रेट करते हैं. पिछले 77 साल से रंगपंचमी पर गेर निकाल रहे संगम कॉर्नर रंग पंचमी महोत्सव समिति के अध्यक्ष कमलेश खंडेलवाल के मुताबिक, इंदौर जिला प्रशासन ने 2019 में गेर को यूनेस्को की सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल करने का प्रयास किया था, लेकिन कोरोना की वजह यह संभव नहीं हो पाया. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस बार फिर से प्रयास किया जाएगा. हर बार गेर में 2 से 3 लाख लोग शामिल होते थे लेकिन इस बार 5 लाख लोग शामिल होंगे.

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77 साल से चल रहे इस समारोह का आयोजन को इस बार यूनेस्को (UNESCO) में शामिल करवाने का प्रयास है। आयोजकों का कहना है कि दो साल बाद रंग पंचमी महोत्सव मनाया जा रहा है। रिकॉर्ड संख्या में लोगों के जुटने की उम्मीद है। ऐसे में एक बार फिर से इसे यूनेस्कों के धरोहर में शामिल करवाने की कोशिश रहेगी। इससे पहले जिला प्रशासन ने 2019 में यूनेस्को की सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल करने का प्रयास किया था, लेकिन कोरोना की वजह नहीं हो पाया।

इंदौर में होली पर 294 साल पुरानी परंपरा के रंग, इंग्लैंड से आए होलकर राजवंश के युवराज

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Holi Celebration. इंदौर के हृदय स्थल राजवाड़ा पर होलिका दहन की परंपरा 1728 में शुरू हुई थी. 294 वर्षों से चली आ रही है इस परंपरा के दौरान समय के साथ कुछ बदलाव हुए है लेकिन बाकी सब कुछ उसी तरह होता है जैसा तब राजपरिवार के सदस्य करते थे.

 होलकर राजवंश के युवराज यशवंत राव होल्कर तृतीय और रिचर्ड होलकर शिवाजी ने इस परंपरा का निर्वहन किया. वे भी 15 साल बाद इंदौर में होली दहन में पहुंचे थे. होलिका की साज-सज्जा राजवाड़ा पर शाम 5 बजे शुरू हो गई थी. दहन से पूर्व सरदार उदयसिंह होलकर ने आकर मल्हारी मार्तंड मंदिर में गादी और होलिका किया

2000 जगह होलिका दहन
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राजवाड़ा पर होलकर राजवंश की तरफ से जो होली जलायी गयी वो इस साल 7 फीट ऊंची थी. होलिका को 1100 कंडों और घास की पिंडी से सजाया गया. मोर पंख, चवर, थाली और भगवान गणेश की प्रतिमा सहित चांदी के 10 बर्तन लाए गए और उनसे पंडित ने पूजन किया. ट्रस्ट के सदस्यों के बाद महिलाओं ने इसकी पूजा की और ठीक सात बजे होलिका दहन किया गया. मान्यता है कि इस होली में शामिल होने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इस बार शहर में छोटी-बड़ी दो हजार होलिकाओं का दहन किया गया. इनमें पर्यावरण संरक्षण और गौ शालाओं को स्वावलंबी बनाने की भावना से गाय के गोबर से बने कंडों का उपयोग किया गया. सरकारी होली के बाद शुरू हुआ होलिका दहन का सिलसिला देर रात तक चलता रहा.

जानिए क्या है गेर उत्सव

इंदौर की गेर का इतिहास काफी पुराना बताया जाता है. इसके लिए मान्यता है कि परंपरा की शुरूआत उस समय हुई, जब होलकर वंश के लोग होली खेलने के लिए रंगपंचमी के मौके पर सड़कों पर निकलते थे. कहा जाता है कि उस समय लोग बैलगाड़ियों में फूलों और प्राकृतिक चाजों से तैयार किए गए रंग और अबीर को लेकर सड़कों पर निकलते थे, जिसे सभी मिलकर एक-दूसरे के साथ मनाते थे.

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