बिरजू महाराज :गायन, वादन और नृत्य कला के महारथी कथक सम्राट । कथक को एक नई पहचान दी थी।

बिरजू महाराज

(Birju Maharaj)

कथक सम्राट

बिरजू महाराज की प्रतिष्ठा भारतीय शास्त्रीय संगीत के एक अहम हस्ताक्षर व मील के पत्थर के रूप में दर्ज की जाएगी।

महाराज का जन्म इलाहाबाद जिले के हंडिया में एक हिंदू ब्राह्मण  परिवार में, कथक प्रतिपादक, जगन्नाथ महाराज के घर में हुआ था, जिन्हें अच्छन के नाम से जाना जाता है।
  
अच्छन महाराज शास्त्रीय नृत्य शैली कत्थक के प्रसिद्ध नर्तक थे। उनको 'अच्छन' इसीलिए कहा जाता था, क्योंकि वे बहुत अच्छे थे। इनका सम्बंध 'लखनऊ घराना' से था।

अच्छन महाराज का वास्तविक नाम जगन्नाथ महाराज था, किन्तु वे अच्छन महाराज के नाम से अधिक जाने जाते थे

प्रसिद्ध कत्थक नर्तक बिरजू महाराज के ये पिता थे।

अपनी भारी-भरकम कद-काठी के बावजूद भी अच्छन महाराज अपनी फुर्ती और गरिमा के लिए जाने जाते थे।

उन्होंने न सिर्फ़ अपने छोटे भाई को कत्थक का प्रशिक्षण दिया, बल्कि पूरे भारत से उनके अनेक शिष्य थे।

अच्छन महाराज शंभू महाराज के बड़े भाई थे। इन्हें कत्थक नृत्य की कला विरासत में मिली थी।


लखनऊ घराने के महाराज, जिन्होंने रायगढ़ रियासत में दरबारी नर्तक के रूप में सेवा की। 

 बिरजू को उनके चाचा, लच्छू महाराज 
और शंभू महाराज 
उनके पिता द्वारा प्रशिक्षित किया गया था, और उन्होंने सात साल की उम्र में अपना पहला गायन दिया था।  

20 मई 1947 को, जब वह नौ वर्ष के थे, तब उनके पिता की मृत्य हो गई।

 
 
पुरस्कार और सम्मान

 1964 - संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार

 1986 - पद्म विभूषण 

 1986 - श्रीकृष्ण गण सभा द्वारा नृत्य चूड़ामणि पुरस्कार 

 1987 - कालिदास सम्मान

 2002 - लता मंगेशकर पुरस्कार 

 इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय से मानद डॉक्टरेट  

 बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से मानद डॉक्टरेट 

 संगम कला पुरस्कार 

 भारत मुनि सम्मान

 आंध्र रत्न

 नृत्य विलास पुरस्कार 

 आधारशिला शिखर सम्मान 

 सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार 

 राष्ट्रीय नृत्य शिरोमणि पुरस्कार 

 राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार

 
 फिल्म पुरस्कार

 2012 - उन्नाई कानाथु (विश्वरूपम) के लिए सर्वश्रेष्ठ कोरियोग्राफी का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार [15]

 2016 - मोहे रंग दो लाल (बाजीराव मस्तानी) के लिए सर्वश्रेष्ठ कोरियोग्राफी का फिल्मफेयर पुरस्कार

जीवन परिचय    पृष्ठभूमि की जानकारी

जन्म का नाम -  बृजमोहन नाथ 

जन्म            -  4 फरवरी 1937

जन्म स्थान     - हंडिया,इलाहाबाद जिला उत्तर प्रदेश, भारत
                    
मृत्यु             -17 जनवरी 2022 (उम्र 84)

मृत्यु स्थान   - दिल्ली, भारत


व्यवसाय     -  नर्तक, संगीतकार ,गायक, कवि, चित्रकार,
                     निर्देशक नाटक अकादमी,    कोरियोग्राफी
                      संगीतकार

शैली          -   भारतीय शास्त्रीय 

सक्रिय वर्ष  - 1951-2016

 रिश्तेदार    -  शंभू महाराज (चाचा)
                     लच्छू महाराज (चाचा


 पंडित बिरजू महाराज ने कथक को न सिर्फ विश्व पटल पर पहचान दिलाई, बल्कि अपनी कला को कई पीढ़ियों के छात्रों तक भी पहुंचाया। 
वह एक उत्कृष्ट कलाकार होने के साथ ही शानदार कवि भी थे और ‘बृजश्याम’ के नाम से कविताएं लिखते थे।

 उन्हें ठुमरी सहित गायकी के अन्य रूपों में भी महारत हासिल थी। पंडित बिरजू महाराज एक शानदार वादक भी थे और कुछ वाद्य यंत्र बजाते थे। लेकिन कथक उनके जीवन का ध्येय बन गया।

 उन्होंने अपना पूरा जीवन इस नृत्य कला को देश-दुनिया के लिए पहचान दिलाने में समर्पित कर दिया।

बृजमोहन नाथ मिश्रा के रूप में जन्मे पंडित बिरजू महाराज अपने शानदार ‘फुटवर्क’ और भाव-भंगिमाओं के बलबूते मंच पर राज करते थे। 
उन्होंने एक बार बताया था कि तीन साल की उम्र से ही उनके पैर उन्हें ‘तालीमखाने’ की ओर खींच ले जाते थे, जहां बच्चों को नृत्य के साथ-साथ तबला व हार्मोनियम बजाना सिखाया जाता था।

लखनऊ में अपने पुश्तैनी मकान में पलते-बढ़ते वह बृजमोहन नाथ मिश्रा से कब बिरजू महाराज बन गए, पता ही नहीं चला। एक साक्षत्कार में कथक सम्राट ने कहा था, ‘‘हमारा घर सुर और ताल के सागर जैसा था। 

सात पीढ़ियों से वहां संगीत के अलावा किसी और विषय पर चर्चा नहीं होती थी। लय, स्वर, ताल, भंगिमा, सौंदर्य और नृत्य ही वह सब कुछ था, जिसके बारे में हम बात करते थे।’’

प्रख्यात कथक नर्तक अच्छन महाराज के घर में जन्मे बिरजू महाराज ने सात साल की उम्र से प्रस्तुति देनी शुरू कर दी थी। अच्छन महाराज का असली नाम जगन्नाथ महाराज था।

बिरजू महाराज ने अपने पिता अच्छन महाराज और चाचा शंभू महाराज व लच्छू महाराज से कथक की बारीकी सीखी थी। बचपन से ही वह अपने पिता के साथ कानपुर, प्रयागराज और गोरखपुर प्रस्तुति देने जाया करते थे।

 उन्होंने मुंबई और कोलकाता में भी पिता के साथ मंच साझा किया।
पिता के निधन के बाद 13 साल के बिरजू महाराज दिल्ली जा बसे।
परिवार को पालने के लिए वह संगीत भारती में कथक सिखाने लगे।

 उन्होंने दिल्ली के भारतीय कला केंद्र और कथक केंद्र में भी कथक सिखाया, जो संगीत नाटक अकादमी की एक इकाई है।

 1998 में वह यहां से फैकल्टी प्रमुख और निदेशक के रूप में सेवानिवृत्त हुए। 

बाद में पंडित बिरजू महाराज ने दिल्ली में अपना डांस स्कूल ‘कलाश्रम’ खोल लिया।

पद्म विभूषण से सम्मानित पंडित बिरजू महाराज ने ‘माखन चोरी’, ‘फाग बहार’, ‘कथा रघुनाथ की’ और ‘कृषनयन’ सहित कई नाटकों में नृत्य निर्देशन भी किया था। ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘देवदास’ और ‘बाजीराव मस्तानी’ जैसी फिल्मों के कुछ गानों का शानदार नृत्य निर्देशन भी उन्होंने ही किया। 


कला क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान के लिए उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, कालीदास सम्मान, नृत्य विलास, राजीव गांधी सम्मान सहित कई अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया था।
 जब गायन, वादन और नर्तन, तीनों कलाएं एक साथ मिलती हैं तो संगीत का सम्पूर्ण स्वरूप उभरता है। पंडित बिरजू महाराज संगीत के सम्पूर्ण अवतार थे। 

वो गायक भी थे, वादक भी और नर्तक भी। जितना बेहतर तबला बजाते थे, उतना ही पखावज भी। 

उनके निधन की खबर सुनकर कला जगत में शोेक की लहर छा गई। शिष्यों की आंखों से आंसू बहने लगे। 

पंडित बिरजू महाराज शिष्यों का शिष्यों के प्रति अपार स्नेह था। ऐसे भी शार्गिद हैं, जिनसे उन्होने गुरु दक्षिणा में पैसे नहीं लिए।


बृजमोहन कैसे बना ''बिरजू महाराज"

बिरजू महाराज की कहानी उन्हीं की ज़ुबानी - 

एक समाचार वार्ता में उन्होंने स्वयं यह  बतलाया

 'लखनऊ के एक अस्पताल में 4 फरवरी 1938 को जब मेरा जन्म हुआ, तो उस दिन सभी लड़कियां ही पैदा हुई थीं, इसलिए मेरा नाम बृजमोहन रख दिया गया। 

फिर बोले यानी गोपियों के बीच मैं बृजमोहन। बाद में मुझे बिरजू कहा जाने लगा।
 जिस घर में आंख खुली।

 उसे बिंदादिन घराना कहा जाता था।

पिता अच्छन महाराज और चाचा शंभू महाराज का नाम देश के प्रसिद्ध कलाकारों में था। 
बचपन से ही सुर-ताल से परिचय आंखों और कानों के मार्फत हुआ। 

मुझे पतंगबाजी अच्छी लगती थी, पर अम्मा को पतंग उड़ाना और गिल्ली-डंडा खेलना बिल्कुल पसंद नहीं था।

 अम्मा जिद करके बाबूजी की महफिल में भेजतीं। 

हाफिज अली खान और मुश्ताक खान जैसे संगीतज्ञों के पास जब कंठ खुलता, तो वो कहते लड़का लयदार है।

शुरू से ही लय, ताल अच्छा रही, यह प्रभु की देन है, पर बाबूजी मना करते थे। अम्मा से कहते, पहले नजराना दिलवाओ। तब मैं छोटे-बड़े मंचों पर प्रस्तुति देने लगा था।'

 महाराज ने आगे बतलाया -
पहली बार, महज छह साल की उम्र में रामपुर नवाब के यहां मंच पर गाया। मंचों के जरिए जमा हुए 501 रुपए अम्मा ने बाबूजी को बतौर नजराना दे दिया। वो हंसते हुए बोले, तुम्हारा बेटा तो अमीर हो गया। इसके बाद उन्होंने मुझे अपना शार्गिद बना लिया। 

तब मैं साढ़े सात साल का था, लेकिन डेढ़ ही साल बाद 9 का हुआ, तो अच्छन महाराज (पिता) की डेथ हो गई।   

अम्मा को रोता देख, मैं भी रोने लगा। अब चाचा शंभू महाराज से तालीम लेने लगा। वहीं, 12 साल तक पहुंचते-पहुंचते लोगों को सिखाने भी लगा।

उनका मानना था कि 
'' नृत्य ही वो रास्ता है, जो प्रभु की तरफ ध्यान दिलाता है।'
 बिरजू महाराज का निधन:पिता का निधन हुआ तो 12 साल की उम्र में नृत्य सिखाने लगे, सत्यजीत रे के कारण फिल्मों से जुड़े, माधुरी उनकी फेवरेट थीं



बिरजू महाराज का करियर

 

कथक का प्रशिक्षण लेने के बाद मात्र 16 साल की उम्र में बिरजू महाराज ने अपनी पहली  प्रोफेशनल प्रस्तुति दी थी

उन्होंने 23 साल की उम्र में नई दिल्ली के संगीत भारती में नृत्य की शिक्षा देना शुरू कर दिया था।

 इसके अलावा दिल्ली में ही भारतीय कला केंद्र में भी बिरजू महाराज ने नृत्य सीखना शुरू किया।
 उसके कुछ समय बाद इन्होंने कथक केंद्र में शिक्षण कार्य शुरू किया।
 यहां पर वे संकाय के अध्यक्ष थे तथा निदेशक भी रहे. साल 1998 में सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने दिल्ली में कलाश्रम नाम से एक नाट्य विद्यालय खोला।

बिरजू महाराज का बॉलीवुड से नाता - 

उन्होंने बॉलीवुड की कई फिल्मों के गीतों का नृत्य निर्देशन किया था।
 बिरजू महाराज ने ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘देवदास’, ‘डेढ़ इश्किया’, ‘उमराव जान’, ‘बाजीराव मस्तानी’, ‘दिल तो पागल है’, ‘गदर एक प्रेम कथा’ सहित कई फिल्मों के गानों में बतौर नृत्य निर्देशक काम किया है.

बिरजू महाराज की नृत्य पर पकड़ इतनी गहरी थी कि उन्होंने विभिन्न प्रकार की नृत्यावालियों जैसे गोवर्धन लीला, माखन चोरी, मालती-माधव, कुमार संभव व फाग बहार इत्यादि की रचना की थी।

बिरजू महाराज ने एक ऐसी शैली विकसित की थी जो उनके दोनों चाचा और पिता से संबंधित तत्व को सम्मिश्रित करती है।

वह पदचालन की सूक्ष्मता और मुख व गर्दन के चालन को अपने पिता और विशिष्ट चालू और चाल के प्रभाव को अपने चाचा से प्राप्त करने का दावा करते थे।

 बिरजू महाराज ने राधा-कृष्ण अनुश्रुत प्रसंगों के वर्णन के साथ विभिन्न अपौराणिक और सामाजिक विषयों पर स्वंय को अभिव्यक्त करने के लिये नृत्य की शैली में नूतन प्रयोग किये थे।

नृत्य के अलावा बिरजू महाराज की ‘भारतीय शास्त्रीय संगीत’ पर भी उनकी गहरी पकड़ थी।

 ठुमरी, दादरा, भजन और गजल गायकी में उनका कोई जवाब नहीं था। 
वह कई वाद्य यंत्र भी बजाना जानते थे। 
 बिरजू महाराज सितार, सरोद और सारंगी भी अच्छी तरह से बजाते थे। उन्होंने कई वाद्य यंत्रों को बजाने की शिक्षा भी ग्रहण की थी।
 इसके अलावा बिरजू महाराज ने एक संवेदनशील कवि और चित्रकार के रूप में भी अपनी पहचान बनाई।

प्रसिद्ध कथक नर्तक और पद्म विभूषण पंडित बिरजू महाराज का रविवार-सोमवार की दरमियानी रात हार्ट अटैक से निधन हो गया है। वे 83 साल के थे। उन्होंने दिल्ली के साकेत हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली। 

बिरजू महाराज को सरोद और वायलिन बजाने का शौक था। नृत्य तो प्रमुख था ही। वो 500 ठुमरी जानते थे। उनके नए-नए क्रिएशन अनगिनत हैं। जिस उम्र में लोग सीखते हैं, महाराज ने सिखाना शुरू कर दिया था।


बिरजू महाराज ने 7 साल की उम्र में दी थी पहली परफॉर्मेंस।

देवदास के गाने 'काहे छेड़ छेड़ मोहे' की शूटिंग के दौरान माधुरी और बिरजू महाराज।

फिल्मों से नहीं जुड़ना चाहते थे बिरजू महाराज
फिल्मों से जुड़ने पर महाराज ने कहा था, 'मुझे प्रस्तुति देने के लिए विदेशों में बुलाया जाने लगा।

 लगभग सारी दुनिया घूम चुका हूं। बिस्मिल्लाह खान, अमीर खान और भीमसेन जैसे सभी बड़े उस्तादों के साथ प्रस्तुति दी। फिल्मों की तरफ नहीं जाना चाहता था, पर मन को समझने वाले मिलते गए, तो कई फिल्में कीं। 

सबसे पहले सत्यजीत रे ने यकीन दिलाया कि बाल से पैर के नाखून तक संगीत से छेड़छाड़ नहीं होगी, तभी उनकी फिल्म 'शतरंज के खिलाड़ी' के लिए दो क्लासिकल डांस सीक्वेंस के लिए संगीत रचा और गायन भी किया। 

इसके बाद 'दिल तो पागल है', 'देवदास', 'डेढ़ इश्किया' और 'बाजीराव मस्तानी' में कोरियोग्राफी की।


बिरजू महाराज ने माधुरी को तीन फिल्मों में डांस सिखाया था।

माधुरी दीक्षित थीं फेवरेट

इंटरव्यू में बिरजू महाराज ने माधुरी दीक्षित की तारीफ करते हुए कहा था, वो तो मेरी फेवरेट हैं। उनमें कुदरतन भाव है। महाराज ने माधुरी को सबसे पहले किसी फिल्म में डांस सिखाया था तो वो फिल्म 'दिल तो पागल है' थी। 

इसमें जिस जुगलबंदी वाले डांस सीक्वेंस की तारीफ हुई थी, उसमें बिरजू महाराज ने ही माधुरी को डांस सिखाया था।

इस सीक्वेंस में शाहरुख खान ड्रम बजाते हैं और माधुरी स्पॉटलाइट में डांस करती दिखाई देती हैं। 

एक इंटरव्यू में माधुरी ने महाराज की तारीफ करते हुए कहा था, 'महाराज जी में कमाल का सेंस ऑफ़ ह्यूमर था और वो अक्सर विदेश यात्रा से जुड़े फनी किस्से सेट पर सुनाया करते थे। 

जब उन्होंने देवदास के गाने 'काहे छेड़ छेड़ मोहे' गाने पर कोरियोग्राफी की तो मुद्राएं, अभिनय और बॉडी लैंग्वेज देखकर तो मुझे लगा कि मैं किसी सेट पर नहीं बल्कि स्वर्ग में हूं। उनकी आर्ट इंद्रधनुष की तरह थी सप्तरंगी, लेकिन नवरस से भरपूर।'

 
पद्म श्री शोभना नारायण   
बिरजू महाराज की उम्दा स्टूडेंट में से एक शोभना नारायण जी हैं।
एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने अपनी जुबानी कहनी बताई।
1964 में नृत्य संगीत सीखना शुरू किया था। उस समय भारतीय कला केंद्र का निर्माण हो रहा था ता हाल और स्टाफ क्वार्टर माता सुंदरी रोड पर शिफ्ट हो गया था। बकौल शोभना नारायण, मैं उनके दूसरे बैच में थी। 

वो प्रतिदिन तीन से चार घंटे तक पढ़ाते थे लेकिन बदले में एक रुपया तक नहीं लिया। उनकी गुरु-दक्षिणा केवल एक प्लेट रबड़ी और पान था। बहुत से शार्गिद उन्हें यही अर्पित करते थे।
शोभना नारायण ने अपनी पुस्तक में गंडा बंधन का भी विस्तार से जिक्र किया है। लिखतीं हैं कि हवन के बाद महाराज जी ने घुंघरु को आर्शिवाद दे पहनने के लिए दिया। साथ ही चना और गुड़ खाने को कहा। 

उन्होंने कहा कि चना को चबाना कठिन है, इसी तरह नृत्य सीखना भी कठिन होता है।

दरअसल, पंडित बिरजू महाराज जी कहते थे कि गंडा बंधन के तहत शुभ दिन, शुभ घड़ी में पूजा होती है। पूजा के बाद चना और गुुड़ खाने के लिए देते हैं।

 चना इस बात का प्रतीक होता है कि यह रास्ता कठिन है और गुड़ इस बात का कि अगर शिष्य ने तयकर लिया है तो जीवन में मिठास ही मिठास होगी।

पद्मश्री उमा शर्मा ने बताया कि उम्र बढ़ने केे साथ डायबिटीज के कारण महाराज जी मीठे से परहेज करने लगे थे। बकौल उमा शर्मा दिवाली पर घर आए थे तो जमकर रसगुल्ला खाए। उनके आवास पर जाने वाले को महाराज जी मिठाई जरूर खिलाते थे।


महाराज का 83 वर्ष की आयु में 17 जनवरी, 2022 को दिल्ली में उनके आवास पर दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उनकी मृत्यु से एक महीने पहले, वे गुर्दे की बीमारी से भी पीड़ित थे और उच्च मधुमेह के कारण उनका डायलिसिस चल रहा था। 
उन्होंने दिल्ली में आखिरी सांस ली. 

पीएम मोदी मे दी श्रद्धांजलि ओर कहा 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर लिखा- 

भारतीय नृत्य कला को विश्वभर में विशिष्ट पहचान दिलाने वाले पंडित बिरजू महाराज जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है।

 उनका जाना संपूर्ण कला जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है. शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिजनों और प्रशंसकों के साथ हैं। 
ओम शांति!
 राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने लिखा-  महान पंडित बिरजू महाराज का निधन एक युग के अंत का प्रतीक है।

 यह भारतीय संगीत और सांस्कृतिक स्थान में एक गहरा शून्य छोड़ देता है।
 वह कथक को विश्व स्तर पर लोकप्रिय बनाने में अद्वितीय योगदान देकर एक प्रतीक बन गए। उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति संवेदना।
कई बढ़ी हस्तियों ने उनकी प्रशंसा की है। व उनको अपना गुरू माना है। 
अनूप जलोटा उनके अन्न्न प्रसंसक रहे हैं।

Reference:

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